यहां मानुष का हृदय हुआ इतना पाषाण। यहां मानुष का हृदय हुआ इतना पाषाण।
संघ के पथ पर चलने कबसे उत्सुक थी। संघ के पथ पर चलने कबसे उत्सुक थी।
उसकी कोमलता उसकी संवेदना उसकी करुणा नहीं उसकी कोमलता उसकी संवेदना उसकी करुणा नहीं
मर्दानी शौर्य की ढ़ाल लिये वो नारी प्रचंड रूप सी। मर्दानी शौर्य की ढ़ाल लिये वो नारी प्रचंड रूप सी।
मैं स्वयम्भू सा स्वयं सिद्ध मैं अपने अहं में पाषाण बना मैं स्वयम्भू सा स्वयं सिद्ध मैं अपने अहं में पाषाण बना
तो मेरा प्रणय निवेदन स्वीकार करने आ जाओ गुलमोहर की छाँव में कर लूँ मैं समर्पण। तो मेरा प्रणय निवेदन स्वीकार करने आ जाओ गुलमोहर की छाँव में कर लूँ मैं समर्...